"न्याय हुआ कितना आसान, तुरंत समस्या का समाधान"
इस वाक्य को चरितार्थ करते हुए उत्तराखंड राज्य सरकार ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 22(बी) के अंतर्गत स्थायी लोक अदालत का गठन नैनीताल जिले में किया है,जिससे जन उपयोगी सेवाओ से जुड़े जनपद एवं चंपावत के मामलों का त्वरित निस्तारण कर आम जनता, वादकारियों ,अधिवक्ताओं, एवं जन सामान्य को शीघ्र सस्ता और सुलभ न्याय उपलब्ध हो सके।
स्थायी लोक अदालत के निम्न लाभ जनता को मिल सकेंगे।
1- कोई भी व्यक्ति अदालती मुकदमेबाजी से पहले सीधे स्थायी लोक अदालत में प्रार्थनापत्र देकर न्याय प्राप्त कर सकता है।
2-यहां कोई फीस या न्याय शुल्क नही लगेगा।
3-दोनों ही पक्षो के मध्य कोई द्वेष/शत्रुता का भाव मुकदमेबाजी से उत्पन्न नही होगा।
4-स्थायी लोक अदालत के निर्णय की कोई अपील किसी भी न्यायालय में नही होगी यानी स्थायी लोक अदालत का निर्णय अंतिम होगा।
स्थायी लोक अदालत में पब्लिक यूटिलिटी सर्विसेज(जन उपयोगी सेवाएं) से सम्बंधित समस्त दीवानी एवं उससे सम्बंधित शमनीय फौजदारी मामले जिनका अधिकतम विवाद मूल्य एक करोड़ तक हो और किसी अन्य न्यायालय में लंबित न हो उन्हें स्थायी लोक अदालत में प्रार्थनापत्र देकर त्वरित रूप से निस्तारित करवाया जा सकता है।
जन उपयोगी सेवाओ के अंतर्गत वर्तमान में निम्न मामले शामिल होंगे
1-वायु,सड़क,रेल,या जलमार्ग द्वारा यात्रियों या माल के वहन के लिए यातायात सेवा।
2-डाक,तार,या टेलीफोन सेवा।
3-ऐसा स्थापन जो जनता को विद्युत, प्रकाश,या जल प्रदान करता हो।
4-लोक सफाई या स्वच्छता प्रणाली स्थापन से सम्बंधित मामले।
5-अस्पताल या औषधालय में सेवा स्थापन से सम्बंधित मामले।
6-बीमा सेवा स्थापन सम्बंधित मामले।
7-शैक्षिक या शैक्षणिक संस्थानों ,सेवा स्थापन सम्बंधित मामले।
8-आवास और भू संपदा सेवा स्थापन मामले।
9-बैंकिंग और वित्तीय सेवा से सम्बंधित मामले।
यहां ये स्पष्ट करना आवश्यक है कि स्थायी लोक अदालत और उपभोक्ता फोरम में अंतर है।उपभोक्ता फोरम में केवल सेवा में कमी से सम्बंधित उपभोक्ता मामलों को सुनने का क्षेत्राधिकार होता है जबकि स्थायी लोक अदालत द्वारा सेवा में कमी के अतिरिक्त जन उपयोगी सेवाओ से सम्बंधित मामलों में प्रतिकार के लिए दावा, धन की वसूली मामले में सुनवाई का भी क्षेत्राधिकार होता है।
उपभोक्ता फोरम में के आदेश से पीड़ित पक्ष द्वारा राज्य उपभोक्ता फोरम एवं राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम में अपील की जा सकती है जबकि स्थायी लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड/पंचाट पर कोई अपील नही होती अर्थात ये आदेश पक्षकारों पर बाध्यकारी होते है।
एक बड़ा अंतर लोक अदालत और लोक स्थायी लोक अदालत में भी है।लोक अदालत में पक्षकार सुलाह समझौते के आधार पर अपने मामले का निस्तारण यदि लोक लोक अदालत में नही करवा पाते तो उस दशा में लोक अदालत को उस मामले को संबंधित मामले को वापस करना पड़ता है जबकि स्थायी लोक अदालत अपने समक्ष लंबित जनउपयोगी सेवाओ से जुड़े मामलों में सुलाह समझौता विफल होने पर उनका निस्तारण गुण दोष के आधार पर स्थायी लोक अदालत स्वयं कर सकता है।