स्कूल बसों के हादसे की खबरें देशभर में अक्सर सामने आती हैं। शहर के स्कूल व परिवहन विभाग के अफसर हादसों से सबक नहीं लेते। दुर्घटनाओं से अगर सीख ली गई होती तो शहर की सड़कों पर 30 वर्ष पुरानी स्कूल बसें नहीं दौड़ रही होती। यह तथ्य माता-पिता को चिंतित कर सकता है। खासकर उन्हें जिनके बच्चे स्कूल बस में सवार होकर पढऩे जाते हैं। चिंतित करने वाला यह आंकड़ा उस विभाग का है जिस पर वाहनों की फिटनेस व उनके संचालन की निगरानी का जिम्मा है।
क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) के रिकार्ड के मुताबिक हल्द्वानी में 30 वर्ष पुराने स्कूल वाहन भी दौड़ रहे हैं। 1992 में आरटीओ में पंजीकृत स्कूल बसें रिकार्ड में आज भी चल रही हैं। नौनिहालों की सेहत की सुरक्षा के लिए यह बसें कितनी फिट होंगी, इसका सहजता से अंदाजा लगाया जा सकता है। स्कूल बसों की निगरानी को लेकर जिम्मेदार परिवहन विभाग के पास वाहनों का अपडेट डाटा ही नहीं हैं। आरटीओ हल्द्वानी के रिकार्ड में 700 से अधिक स्कूल बसें पंजीकृत हैं। इस आंकड़े में 1992 में चली बसें भी शामिल हैं।
एआरटीओ प्रशासन हल्द्वानी विमल पांडे ने बताया कि स्कूल बसों का आंकड़ा अपडेट नहीं है। 1992 से भी स्कूल बसें हमारे रिकार्ड में दर्ज हैं। छंटाई कर रिकार्ड अपडेट किया जाएगा। ऐसे वाहनों के खिलाफ विशेष अभियान चलाकर बसों का रजिस्ट्रेशन रद किया जाएगा।
निगरानी को लेकर गंभीरता नहीं पुराने व चलन से बाहर हो चुके वाहन को स्क्रैप कराकर पंजीकरण रद करना वाहन मालिक की जिम्मेदारी होती है। पंजीयन रद नहीं कराने पर नियमानुसार टैक्स देना होता है। दूसरी ओर परिवहन विभाग की जिम्मेदारी है कि वह निगरानी कर अनफिट वाहनों को सड़क पर दौडऩे से रोके। 30 साल पुरानी स्कूल बसें रिकार्ड में होने के मामले में स्कूल प्रबंधन व आरटीओ दोनों की लापरवाही उजागर हुई है।